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मटर की खेती-
आज हम मटर की खेती के बारे में कुछ जरूरी बाते सीखेगें इससे पहले मैं आपको लहसुन और प्याज की वैज्ञानिक खेती के बारे में भी बता चुका हूँ आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करके इसे देख सकते हैं-
अगर आप मटर की खेती करने के बारे में सोच रहें हैं तो यह पोस्ट आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। इसमें आपको मटर की खेती के आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों के बारे में बताया है। जैसे मटर की खेती किस प्रकार की मिट्टी पर किया जाये। इसके लिए उपयुक्त समय क्या है। खाद कैसी हो। किट रोगों से बचाव कैसे किया जाये ये सब तरीके हम आपको इस पोस्ट के द्वारा बतायेगें जिसको अपनाकर आप कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इससे पहले हम मटर के बारे में कुछ जान लेते हैं-
मटर-
मटर एक ठंड मौसम की सब्जी है जो बाजार में नवम्बर से लेकर फरवरी माह के बीच में आती है इसका उपयोग बस सब्जियों तक ही सिमित नहीं है बल्कि इससे दाल और बेसन भी तैयार किया जाता है। मटर का क्या उपयोग होता है ये बताने की जरूरत नहीं है बस इतना जान लीजिए की यह भले ही ठण्ड मौसम की सब्जी हो पर इसका उपयोग वर्ष भर किसी ना किसी रूप में किया जाता है। मटर में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट , फास्फोरस , पोटैशियम आदि भरपूर मात्रा में पाया जाता है। भारत में इसकी खेती बहुत बडें स्तर पर की जाती है। बहुत से किसान भाई इसकी आधुनिक खेती करके कम लागत में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा रहे है। तो आइये देखते हैं कि मटर की खेती कैसे करें।
मटर की खेती के लिए जलवायु-
मटर की खेती किस समय और किस प्रकार की जलवायु में करनी चाहिए इसके बारे में हमे जानकारी होनी चाहिए। मटर की खेती के लिए नम और ठंडी जलवायु की जरूरत होती है इसकी खेती रबी ऋतू में करना अच्छा होता है मटर की खेती के लिए गर्म या सुष्क जलवायु अच्छी नहीं होती है। इससे पौधों के विकाश पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जिन जगहों पर 65 से 70 सेमी. वर्षा होती है वहाँ मटर की खेती अच्छे तरीके से की जाती है। ज्यादा वर्षा का होना इसके लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। खास तौर पर इसकी खेती जुलाई से अगस्त के महीने में की जाती है।
मटर की खेती के लिए भूमि-
जब जलवायु के बारे में पता चल जाये तो हमे ये देखना होता है कि मटर की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी अच्छी होती है। मटर की खेती हर प्रकार के भूमि में की जा सकती है जिसमे नमी हो। लेकिन इसके खेती के लिए अच्छी जल निकाशी वाली दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है।
बलुई दोमट मिट्टी पर भी इसकी खेती की जा सकती है अगर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो।
मटर की कुछ प्रजातियां-
* अर्ली बैजर- यह प्रजाति अगेती किस्म की है जो की संयुक्त राज्य अमेरिका से लायी गयी है।
इसकी फलिया 7 से 9 सेमी. लंबी तथा मोटी होती है। इसकी प्रति हेक्टेयर उपज लगभग 80 से 100 क्विंटल है। इसको खेत में बोने के 2 से 3 महीनों में तोडा जाता है। जब इनमे दाने पड़ जाएं।
इसकी फलिया 7 से 9 सेमी. लंबी तथा मोटी होती है। इसकी प्रति हेक्टेयर उपज लगभग 80 से 100 क्विंटल है। इसको खेत में बोने के 2 से 3 महीनों में तोडा जाता है। जब इनमे दाने पड़ जाएं।
* असौजी- यह भी अगेती किस्म की प्रजाति है जिसके फलियों की लंबाई छोटी होती है लगभग 5 से 6 सेमी. इसको बोने के लगभग 60 से 80 दिनों में यह तैयार हो जाती है। इसकी प्रति हेक्टरे उपज 80 से 100 क्विन्टल है।
* अर्ली दिसम्बर- अर्ली दिसम्बर एक अगेती किस्म की प्रजाति है। यह खेत में बोने के बाद 50 से 60 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी प्रति हेक्टेयर उपज 75 से 100 क्विन्टल है।
* पन्त उपहार- पन्त उपहार प्रजाति की बुआई का समय अक्टूबर के अंत से लेकर नवम्बर के अंत तक किया जाता है। बोने के लगभग 60 से 70 दिनों में ये तैयार हो जाती हैं। और तोड़ने का कार्य किया जाता है।
* आर्केल- यह यूरोप से लायी गयी अगेती किस्म की प्रजाति है। जिसकी तुड़ाई तीन बार किया जा सकता है। इसकी उपज प्रति हेक्टरे 70 से 100 क्विन्टल तक होती है।
* फिल्ड मटर- यह एक अच्छे किस्म की प्रजाति है जिसका उपयोग दाल बनाने चारा बनाने आदि में किया जाता है।
बिज को बोना-
प्रति हेक्टेयर के हिसाब से- अगेती किस्म की मटर की प्रजाति के लिए 90 से 100 किग्रा. बिज तथा मध्यम किस्म की प्रजातियों के लिए 75 से 80 किग्रा बिज उपयुक्त रहता है।
बिज को बोने के पहले उसको अच्छे तरीके से उपचारित कर लेना चाहिए जिसके लिए आप निम् का तेल या कैरोसिन में बीज को उपचारित कर सकते हैं। बिज को खेत में बोने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर लेनी चाहिए। ज्यादातर बिज को हल से जुताई करके बोया जाता है पर इसके लिए आप ड्रिल मसीन की भी सहायता ले सकते हैं। सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से 2 से 3 जुताई करके समतल बना लें और बीज बोने के समय खेत में कम से कम 5 से 6 इंच का गड्डा खोद लें और उसमें 5 से 7 इंच की दुरी पर उपचारित किये हुए मटर के दाने डालकर गड्ढे को बंद कर दें।
प्रति हेक्टेयर के हिसाब से- अगेती किस्म की मटर की प्रजाति के लिए 90 से 100 किग्रा. बिज तथा मध्यम किस्म की प्रजातियों के लिए 75 से 80 किग्रा बिज उपयुक्त रहता है।
बिज को बोने के पहले उसको अच्छे तरीके से उपचारित कर लेना चाहिए जिसके लिए आप निम् का तेल या कैरोसिन में बीज को उपचारित कर सकते हैं। बिज को खेत में बोने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर लेनी चाहिए। ज्यादातर बिज को हल से जुताई करके बोया जाता है पर इसके लिए आप ड्रिल मसीन की भी सहायता ले सकते हैं। सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से 2 से 3 जुताई करके समतल बना लें और बीज बोने के समय खेत में कम से कम 5 से 6 इंच का गड्डा खोद लें और उसमें 5 से 7 इंच की दुरी पर उपचारित किये हुए मटर के दाने डालकर गड्ढे को बंद कर दें।
मटर की खेती के लिए खाद प्रबन्ध-
अच्छे तरीके से खेती करने के लिए हमे खाद प्रबन्ध पर विशेष ध्यान देना चाहिए जो की नीचे आपको बताया गया है।
खेत में मटर बोने से पहले अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 40 से 50 किग्रा. तथा निम् की खली को खेत में मिलाकर अच्छे तरीके से जुताई कर देनी चाहिये। इसके साथ अगर आप आर्गेनिक खाद भी मिला ले तो अच्छी उपज प्राप्त होती है आप 2 बैग भू पावर 45 से 50 किग्रा. 2 बैग
माइक्रो निम 20 से 25 किग्रा. , 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सिफाल्ट 10 किग्रा , 2 बैग माइक्रो भू पावर 8 से 10 किग्रा. और अरन्डी की खली 50 से 55 किग्रा. को एक साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल दे और जुताई कर दें। खेत की जुताई करके जब मटर के बीज बो लेते हैं तो 25 से 30 दिनों के बाद 2 बैग सुपर गोल्ड मैग्नीशियम 1 किग्रा. , तथा माइक्रो झाइम 500 मिली लीटर को पानी में घोलकर खेत में छिड़काव करें। दूसरा छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतराल पर करें।
खेत में मटर बोने से पहले अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 40 से 50 किग्रा. तथा निम् की खली को खेत में मिलाकर अच्छे तरीके से जुताई कर देनी चाहिये। इसके साथ अगर आप आर्गेनिक खाद भी मिला ले तो अच्छी उपज प्राप्त होती है आप 2 बैग भू पावर 45 से 50 किग्रा. 2 बैग
माइक्रो निम 20 से 25 किग्रा. , 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सिफाल्ट 10 किग्रा , 2 बैग माइक्रो भू पावर 8 से 10 किग्रा. और अरन्डी की खली 50 से 55 किग्रा. को एक साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल दे और जुताई कर दें। खेत की जुताई करके जब मटर के बीज बो लेते हैं तो 25 से 30 दिनों के बाद 2 बैग सुपर गोल्ड मैग्नीशियम 1 किग्रा. , तथा माइक्रो झाइम 500 मिली लीटर को पानी में घोलकर खेत में छिड़काव करें। दूसरा छिड़काव 15 से 20 दिन के अंतराल पर करें।
खरपतवार नियंत्रण एवं निराई गुड़ाई-
मटर के खेत ने बहुत से अनावश्यक खरपतवार उगने लगते हैं जैसे- बथुआ , अंकारी , सैजी आदि इनपर नियंत्रण करना बहुत ही जरूरी हो जाता है। मटर के बीज खेत में बोने के लगभग 40 से 45 दिन तक इन खरपतवारों से मटर को बचाना पड़ता है। इसलिए बिज बोने के 25 से 30 दिन के बाद आवश्यक्तानुसार 1 या 2 बार खेत में निराई गुड़ाई करनी चाहिए।
सिंचाई प्रबन्ध-
जहां तक मटर की खेती में सिंचाई की बात है तो इसकी सिचाई दो बार करनी पड़ती पहली सिचाई मटर को खेत में बोने के लगभग 40 से 45 दिन बाद तथा दूसरी सिचाई 60 से 65 दिन बाद। अगर पहली सिंचाई के बाद वर्षा हो जाये तो दूसरी सिचाई की जरूरत नहीं पड़ती है।
जहां तक मटर की खेती में सिंचाई की बात है तो इसकी सिचाई दो बार करनी पड़ती पहली सिचाई मटर को खेत में बोने के लगभग 40 से 45 दिन बाद तथा दूसरी सिचाई 60 से 65 दिन बाद। अगर पहली सिंचाई के बाद वर्षा हो जाये तो दूसरी सिचाई की जरूरत नहीं पड़ती है।
किट नियंत्रण-
अगर आप मटर की खेती करने जा रहें हैं तो मटर में लगने वाले किट और उनसे बचाव के बारे में आपको जरूर जानना चाहिए जो की आपको नीचे बताया गया है-
1. माहू किट- माहू किट का आक्रमण ज्यादातर जनवरी के समय दिखाई देता है। इससे बचाव के लिए नीम का काढ़ा बनाकर माइक्रो झाइम के साथ मिक्स करके खेत में छिड़काव करना चाहिए।
2. बीज बिगलन रोग- बीज बिगलन रोग में जब मटर में दाने पड़ते हैं तभी वो सड़ने या खराब होने लगते हैं इससे बचाव के लिए मटर को खेत में बोने से पहले उसे कैरोसिन से उपचारित करके बोना चाहिए।
3. बुकनी रोग- बुकनी रोग में मटर के पौधे की पत्तियां फलों और तनो पर चित्ती सा पड़ने लगता है जिससे ये खराब हो जाती हैं अगर सही समय पर इनका उपाय न किया जाय तो उत्पादन क्षमता में कमी आ जाती है। इससे बचाव के लिए नीम का काढ़ा बनाकर उसे माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर खेत में छिड़काव करना चाहिए।
4. तना छेदक- तना छेदक एक प्रकार की मक्खी जैसी होती है। इसका रंग काला होता है ये बहुत ही खतरनाक होती है मटर के लिए। तथा भारी मात्रा में नुकशान भी पहुचाती है। ये पौधे के तनो को अंदर से खा जाती हैं जिससे पौधे मुरझा जाते हैं। इनसे बचाव के लिए वही उपाय करना चाहिए जो ऊपर बुकनी रोग से बचाव के लिए बताया गया है।
5. उकठा रोग- उकठा रोग बहुत ही खराब होता है मटर की खेती के लिए इस रोग के लगने से मटर की पत्तियां उपर से नीचे तक पिली पड़ने लगती हैं। और वे मुरझा कर गिर जाती है। इससे बचाव के लिए नीम का काढ़ा बनाकर माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर खेत में छिड़काव करना चाहिए।
मटर की उपज-
मटर की अगर अच्छे से देख रेख की गयी हो तो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 80 से 120 क्विन्टल उपज प्राप्त हो जाती है। साथ में 140 से 150 क्विन्टल हरा चारा भी प्राप्त होता है।
मटर की अगर अच्छे से देख रेख की गयी हो तो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 80 से 120 क्विन्टल उपज प्राप्त हो जाती है। साथ में 140 से 150 क्विन्टल हरा चारा भी प्राप्त होता है।
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