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महान क्रन्तिकारी भगत सिंह का जीवन परिचय हिंदी में

Bhagat Singh Story in hindi 26 जनवरी स्पेशल:-


"" जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधे पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर सिर्फ जनाजे उठाये जाते हैं""

नमस्कार भगत सिंह को कौन नहीं जानता चाहे वह अपना देश भारत हो या विदेश हर जगह के लोग इस क्रन्तिकारी के नाम और काम से परिचित हैं Bhagat Singh के बारे में कोई क्या लिखे मैं जितना सोचता हूँ उतने ही शब्द निकल कर आते हैं उनके बारे में मैं क्या लिखूं कुछ समझ नहीं आता क्योंकि ऐसे व्यक्ति के बारे में लिखने की क्षमता ना ही मुझमें हैं ना ही किसी और में इसमें आपको भगत सिंह से जुड़ी कुछ बाते मैं बता रहा हूँ उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा।

"" प्रेमी पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं""

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब प्रान्त के जिला लयालपुर के बावली गांव में हुआ था जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। 


भगत सिंह  पांच भाई – रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत और तीन बहनें  – प्रकाश कौर, अमर कौर एवं शकुंतला कौर थीं। बाल अवस्था में भी इनके खेल अनोखे थें वे अपने साथियों को दो टोलियों में बाट देते थे और वे एक दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास करते थे । इनका हर कार्य ऐसा था जो वीर , धीर और निर्भीक होने का एहसास दिलाता था।

bhagat singh ka jivan parichay

चाचा अजित सिंह और  पिता किशन सिंह के साए में बड़े हो रहे  बचपन से अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों की किस्से सुनते आ रहे थें। भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह जेल में थें और चाचा एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थें Bhagat Singh लाहौर के नेशनल कॉलेज से जब बी.ए. कर रहे थें तभी उनके देश प्रेम और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य ने उनसे पढ़ाई छुड़वा कर देश की आज़ादी के पथ पर ला खड़ा किया।

""देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं""

इनके  बारे में कहा जाता है कि एक बार उनके पिता किशन सिंह उनको लेकर अपने दोस्त नन्द किशोर मेहता के पास उनके खेत पर गएँ दोनों मित्र आपस में बात कर रहे थें तभी नन्द किशोर मेहता का ध्यान भगत सिंह के ओर गया उन्होंने देखा की Bhagat Singh मिट्टी के ढेरों पर छोटे छोटे तिनके लगाये जा रहे हैं इसके देख नन्द किशोर मेहता से रहा नहीं गया और उन्होंने पूछा तुम्हारा नाम क्या है , जवाब मिला भगत सिंह, नन्द किशोर मेहता ने फिर पूछा " करते क्या हो"
जवाब मिला " मैं बंदूकें बेचता हूँ"
बंदूकें,,,,?
भगत सिंह:- "" हाँ बंदूकें ""
नन्द किशोर मेहता:- वह क्यों,,,,,?
भगत सिंह:- "" अपने देश को स्वतंत्र करने के लिए""
नन्द किशोर मेहता:- तुम्हारा धर्म क्या है,,,,?
भगत सिंह:- "" देशभक्ति , देश की सेवा करना ""

श्री नन्द किशोर मेहता एक राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे वे भगत सिंह के विचारों से इतना प्रभावित हुए की उन्होंने अपने गोद में उनको उठा लिया और उन्होंने  सरदार किशन सिंह से कहा की तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हारे घर में ऐसे बालक ने जन्म लिया है  मेरा आशिर्वाद है इसे की यह एक दिन संसार में तुम्हारा नाम रोशन करेगा और लोगों को इसपर गर्व होगा वास्तव में इनकी कही हुयी बात सही हुई।

भगत सिंह का परिवार स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ था उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह ग़दर पार्टी के सदस्य थे जो की भारत से ब्रिटिश शासन को निकालने के लिए बनी थी लाहौर में पढ़ते समय भगत सिंह जाने माने नेता लाला लाजपत राय और रास विहारी बोस के सम्पर्क में आया उस समय पंजाब राजनैतिक रूप से काफी उत्तेजित था।

भगत सिंह पर जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव:-


जलियावांला बाग हत्याकांड को कौन नहीं जानता ऐसी क्रूर और निर्मम हत्या जो भगत सिंह को एकदम झकझोर दिया जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण तरीके से सभा आयोजित करने के इरादे से इक्कठा हुए बेकसूर लोगों को जिस तरह क्रूरता से मारा गया नरसंहार किया गया उस घटना ने उनको एकदम झकझोर दिया जलीयांवाला बाग मे बच्चो, बूढ़ो, औरतों, और नौजवानो की भारी तादाद पर अंधाधुंध गोलियां बरसा कर अंग्रेज़ो ने अपने अमानवीय, क्रूर, और घातकी होने का सबूत दिया था। यह घटना जब हुई तो भगत सिंह की उम्र केवल 12 साल थी इसकी खबर जब भगत सिंह को मिली तो वे 12 मिल दूर तक चलकर हत्याकांड वाली जगह पर पहुचें और उस जगह से मिट्टी इकट्ठा कर पूरा जीवन इसे एक निसानी के तौर पर रखा इस हत्याकांड ने अंग्रेजों को भारत से निकालने के उनके संकल्प को और सुदृण कर दिया।

असहयोग आंदोलन से महात्मा गांधी का पीछे हटना और भगत सिंह पर इसका प्रभाव:-

महात्मा गांधी एक सत्य अहिंसा के पुजारी व्यक्ति थे वे एक दिग्गज स्वतंत्रता सेनानी थें सत्य बोलना अहिँसा के मार्ग पर चलना ये सब महात्मा गांधी के गुण थें जब 1921 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आवाह्न किया तब भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़कर आंदोलन में सक्रिय हो गएँ लेकिन 1922 में महात्मा गांधी ने गोरखपुर में हुए चौरी चौरा हत्याकांड के बाद असहयोग आंदोलन बन्द कर दिया तब ये बहुत निराश हुए अहिँसा पर उनका विस्वास कम हो गया और वे इस निष्कर्ष पर पहुचे की सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी विकल्प है। 

अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए इन्होंने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित विद्यालय में प्रवेश लिया यह विद्यालय क्रन्तिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर भगवतीचरण वर्मा , सुखदेव , और दूसरे महान क्रंतिकारियों के सम्पर्क में आयें।

""राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैंएक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।""

वीर सावरकर से मिलाप:-

भगत सिंह की मुलाकात चंद्रशेखर आजद जी से वीर सावरकर  कहने पर हुई। वीर सावरकर ने भगत सिंह को क्रांति और देशभक्ति के रास्ते पर चलने के कई रहस्य बताएं चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह मिलकर समाजवादी प्रजातंत्र का गठन किया जिसका उद्देश्य था कि क्रांति  माध्यम से भारत में गणतंत्र की स्थापना करना।

भगत सिंह पर काकोरी कांड का प्रभाव:-

काकोरी कांड में गिरफ्तार हुए आरोपियों में से 4 को जब मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई गयी और अन्य 16 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा दी गयी तब भगत सिंह पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा यह खबर उनको क्रांति के धधगते अंगारे में बदल दिया इसके बाद भगत सिंह ने अपनी पार्टी नवजवान भारत सभा का विलय हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन” में कर के नयी पार्टी “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन”का आहवाहन किया।

लाला लाजपत राय के मौत का बदला:-

भारत में 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग आया था जिसका मुख्य उद्देश्य था भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतन्त्र में भागेदारी इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन का विरोध होने लगा लाहौर में साइमन कमीशन  खिलाफ नारेबाजी करते समय लाला लाजपत राय पर लाठी चार्ज किया गया और वे घायल हो गएँ और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। भगत सिंह और उनके दल ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए स्काट को मारने की योजना बनाई जो उनकी मौत का जिम्मेदार था 17 दिसंबर 1928 को लाहौर कोतवाली पर भगत सिंह, राजगुरु  जयगोपाल, चन्द्रशेखर, तैनात हुए, और स्काट की जगह सौन्डर्स को देख कर उसे मारने के लिए आगे बढ़ गए क्योंकि सांडर्स भी उसी जालिम हुकूमत में से एक था एक गोली राजगुरु  ने सौन्डर्स को कंधे पर मारी। फिर भगत सिंह ने सौन्डर्स को तीन चार गोलियां  मारी। और इस तरह सौन्डर्स को मार कर भगत सिंह और उनके साथियो ने लालजी की मौत का बदला लिया।

केंद्रीय असेम्बली में बम फेंकना:-

ब्रिटिश सरकार को भारत के आम आदमी, मजदूर, छोटे व्यवसायी, गरीब कामगार, वर्ग के दुख और तकलीफ़ों से कोई मतलब नहीं था उनका मकसद भारत को लूटना और भारत पर शासन करना था ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों  को अधिकार और आजादी देने और असन्तोष के मूल कारणों को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया डिफेन्स ऑफ़ इंडिया एक्ट के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया इसके तहत पुलिस सन्दिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलुस को रोक और लोगों को गिरफ्तार भी कर सकती थी केंद्रीय विधानसभा में यह प्रस्ताव एक मत से हार गया फिर भी सरकार ने इसे जनता के हित में बताकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किए जाने का फैसला किया  भगत सिंह, चंद्रशेखर और उनके दल को यह मंजूर नहीं था, की देश के आम इन्सान, जिनकी हालत पहले से ही गुलामी के कारण खराब थी, वो और खराब हो जाये
इसलिए इन्होंने केंद्रीय विधानसभा जहाँ अध्यादेश को पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था वहाँ बम फेंकने की योजना बनाई यह एक सावधानीपूर्वक रची गई योजना थी जिसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुचाना नहीं था फिर ब्रिटिश सरकार विरोधी  नितियों  वाले बिल पर विरोध जताने  लिए भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केन्द्रीय एसम्ब्ली मे 8 अप्रैल 1929 को बम फेंके। बम फेंकने का मकसद किसी की जान लेना नहीं था। पर ब्रिटिश सरकार को अपनी बेखबरी भरी गहरी नींद से जगाना और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीको को और सहन नहीं किया जा सकता। केंद्रीय एसेम्बली में फेंके गए बम सावधानी से खाली जगह का चुनाव करके फेंके गए थे बम फेंकने के बाद घटना स्थल से भागने के बजाय इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने स्वेक्षा से गिरफ्तारी दे दी।

""कोई भी व्यक्ति जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार खड़ा हो उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा और चुनौती भी देना होगा"'

जेल में भूख हड़ताल:-

जब भगत सिंह और उनके साथियों को जेल में बंद किया गया तो उन्होंने अपने 2 साल के जेल कारावास के दौरान कई पत्र लिखें और कई पत्रों में पूंजीपतियों की शोषण युक्त नीतियों की कड़ी निंदा की जेल में भगत सिंह और साथी कैदियों पर जो अमानवीय और अत्याचारी व्यवहार हो रहा था और कच्चे पके खाने और रहने के लिए अस्वक्ष निर्वास में रखा जाता था इसके खिलाफ भगत सिंह ने साथी कैदियों के साथ मिलकर लगभग 2 महीनों (64 दिन) तक भूख हड़ताल किया अंत में अंग्रेज सरकार को उनकी मांगें माननी पड़ी पर इसी भूख हड़ताल में क्रन्तिकारी क्रांतिकारी यातींद्रनाथ दास शहीद हो गए।

""आम तौर पर लोग जैसी चीजें हैं उसके आदी हो जातेहैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमेंइसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना सेबदलने की जरूरत है""

भगत सिंह और साथीयों को फांसी:-

भगत सिंह ने अपनी सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के किसी भी वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को विशेष अदालत के द्वारा फाँसी की सजा सुनाई गयी देश की आजादी के लिए अपनी परवाह न करने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह राजगुरु  और सुखदेव को भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और की अपीलों के बावजूद भी  भगत सिंह राजगुरु  और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फाँसी दे दी गयी। भगत सिंह की फांसी के दिन उनकी उम्र 23 वर्ष 5 माह और 23 दिन थी, और उन्हे जिस दिन फांसी दी गयी, उस दिन भी 23 तारीख थी। और कहा जाता है के इन तीनों क्रांतिकारियों को निर्धारित समय से पहेले ही फांसी दी गयी थी। ताकि देश के आम लोगो मे इस फैसले के खिलाफ क्रांति की ज्वाला ना भड़के।

""अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है । लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ? तभी हमें आत्म -बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें""

""किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और  नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान , वाशिंगटन और गैरीबाल्डी , लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है""

26 जनवरी स्पेशल की पोस्ट महान क्रांतिकारी भगत सिंह पर है उम्मीद है यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी भगत सिंह पर लिखी यह पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो दोस्तों में शेयर जरूर करें।

"सिने पर जो ज़ख्म है, सब फूलों के गुच्छे हैं, हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं।"

""इंसानों को कुचलकर आप उनके विचारो को नही मार सकते""

"" यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा ""

"" बम और पिस्तौल क्रांति नहीं लाते हैं। क्रान्ति की तलवार विचारों के धार बढ़ाने वाले पत्थर पर रगड़ी जाती है ""

"" व्यक्ति की हत्या करना सरल है परन्तु विचारों की हत्या आप नहीं कर सकते ""

"" इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है ""

"" क्रांति लाना किसी भी इंसान की ताकत के बाहर की बात है। क्रांति कभी भी अपनेआप नही आती। बल्कि किसी विशिष्ट वातावरण, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में ही क्रांति लाई जा सकती है''

"" मजिस्ट्रेट साहब, आप भाग्यशाली हैं कि आज आप अपनी आखों से यह देखने का अवसर पा रहे हैं कि भारत के क्रांतिकारी किस प्रकार प्रसन्नतापूर्वक अपने सर्वोच्च आदर्श के लिए मृत्यु का आलिंगन कर सकते हैं ""
"" आज मेरी कमजोरियां लोगों के सामने नहीं हैं । अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का निशान मद्धिम पड़ जाएगा या शायद मिट ही जाए, लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते फांसी पाने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि इंकलाब को रोकना इम्पीरियलिज्म की तमाम सर (संपूर्ण) शैतानी कुबतों के बस की बात न रहेगी ""

"" जहां तक हमारे भाग्य का संबंध है, हम बड़े बलपूर्वक आपसे यह कहना चाहते हैं कि अपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है, आप ऐसा करेंगे ही, आपके हाथों में शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त हैं, परंतु इस प्रकार आप ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला’ सिद्धांत ही अपना रहे हैं और आप उस पर कटिबद्ध है । हमारे अभियोग की सुनवाई इस वक्तव्य को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हमने कभी कोई प्रार्थना नहीं की और अब भी हम आपसे किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नहीं करते । हम केवल आपसे यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियोग है, इस स्थिति में हम युद्ध-बंदी हैं, अत: इस आधार पर हम आपसे मांग करते हैं कि हमारे साथ युद्ध-बंदियों जैसा ही बर्ताव किया जाए और हमें फांसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाए ""

"" किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग यादुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसेअलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं ""

महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह