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Bhindi ki kheti kaise kare भिन्डी की खेती कैसे करें

BHINDI KI VIGYANIK KHETI KARNE KA TARIKA (भिंडी की वैज्ञानिक खेती)


Aaj aapko is post me ham batayege ki bhindi ki kheti kaise kare. Ya bhindi ki kheti Karne ka vaigyanik tarika.

bhindi ki kheti kaise kare

अगर आप खेती से सम्बंधित जानकारी को प्राप्त करना चाहते हैं। तो आपके लिए यह बिल्कुल सही जगह है। हम आपको आज भिन्डी की आधुनिक या जिसे हम वैज्ञानिक खेती भी कहते हैं उसके बारे में बता रहे हैं।



बहुत ही समय से भिन्डी लोगों को लोकप्रिय  हरी सब्जी रही है इसका कारण है भिन्डी में अनेक प्रोटीन (PROTEIN) विटामिनों (VITAMIN) आदि का होना। इतना ही नहीं भिंडी का स्वाद भी बहुत अच्छा है।


भिन्डी के इन्ही सब फायदों के कारण किसान भिन्डी की खेती पर ध्यान देते हैं। या हम कह सकते हैं की किसान भिन्डी की खेती करते चले आ रहे हैं। अगर आप भिन्डी की खेती वैज्ञानिक तरीके से करेगें तो आपको कम लागत में अधिक मुनाफा हो सकता है।

जैसे भिन्डी की खेती के लिए जलवायु कैसी हो। भिन्डी की खेती के लिए भूमि कैसी हो। भिन्डी की खेती के लिए मौसम कौन सा सही है। भिन्डी में लगने वाले रोग और उनसे छुटकारा कैसे पाया जाय। भिन्डी के लिए खाद की व्यवस्था कैसी हो। आदि के बारे में बताया गया है।

1. भिन्डी की खेती के लिए जलवायु-

अगर आप भिन्डी की खेती के बारे में सोच रहे हैं तो आपको जलवायु की जानकारी होनी चाहिए। क्योंकि सही मौसम की जानकारी ना होने के कारण आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है।

अगर मौसम की बात करें तो भिन्डी की खेती के लिए गर्मी का मौसम उत्तम रहता है। यानि की गर्मी के मौसम में भिन्डी का उत्पादन अच्छे से होता है।

तापमान 20 डिग्री से. तक होना चाहिए अगर तापमान 40 डिग्री से. से ज्यादा होगा तो फूल गिर जाते हैं।


2. भिन्डी के लिए  भूमि-

भिन्डी की खेती के लिए अगर भूमि की बात करें तो इसे किसी भी तरह की भूमि पर उगाया जा सकता है पर हल्की दोमट मिट्टी जिसमे जल निकासी अच्छी हो बढ़िया मानी जाती है।

3. भिन्डी के लिए भूमि की तैयारी-

मौसम के बाद भूमि की तैयारी की बात आती है। भिन्डी की खेती के लिए खेत को जोतकर उसमे से खरपतवार , घास फूस , कंकर पत्थर जो भी फसल को नुकसान पहुचाये उसे निकल लेना चाहिए। इससे आपके फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ जायेगी। एक बात का ध्यान दें अगर आपके खेत में प्लास्टिक है तो उसे जरूर निकाल लीजिये प्लास्टिक का होना न तो किसी फसल के लिए अच्छा होता है ना ही खेत के लिए।

खेत को 2 से 3 बार जोतकर समतल बना लेना चाहिए अगर खेत समतल न हो सकते तो क्यारियां बना लेनी चाहिए जिससे की सिंचाई करने में कोई दिक्कत ना हो।

4. भिन्डी के लिए खाद प्रबन्ध-

प्रति हेक्टेयर की दर से-

1. गोबर की खाद- 300 से 350 क्विंटल
2. नत्रजन (NITROGEN)- 60 किग्रा.
3. सल्फर (SULPHUR) - 30 किग्रा.
4. पोटास (POTASH) - 50 किग्रा.

सबसे पहले खेत की साफ सफाई करके 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद खेत में अच्छी तरह से खेत में मिला लेनी चाहिए।

उसके बाद नत्रजन 60 किग्रा. , सल्फर 30 किग्रा. , पोटास 50 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लेनी चाहिए।

भिन्डी के बिज रोपने से पहले पोटास और सल्फर की पूरी मात्रा और नत्रजन को आधी मात्रा मिट्टी में बढ़िया तरीके से मिला लेनी चाहिए। और बाकि बची आधी नत्रजन को बिज रोपने के 30 दिन के अंतर पर दो बार देनी चाहिए।

5. भिन्डी के बिज की रोपाई-

गर्मी का मौसम भिन्डी की खेती के लिए अच्छा होता है। गर्मी के मौसम में 20 किग्रा. बिज प्रति हेक्टेयर की दर रोपना अच्छा रहता है।

भिन्डी के बिज को रोपने से पहले 24 घंटे तक पानी में डालकर छोड़ देना चाहिए। भिन्डी की बिज को रोपने के लिए कतार बना लेना चाहिए क्योंकि भिन्डी के लिए कतार (LINE) बनाना अच्छा रहता है।

एक कतार से दूसरे कतार की दुरी 20 से 30 से.मी. होनी चाहिए। रोपाई के समय एक पौधे से दूसरे पौधे की दुरी 20 से 25 से.मी. होनी चाहिए।


वर्षा के मौसम में 25 किग्रा. बिज प्रति हेक्टेयर की दर से रोपना उत्तम होता है।

वर्षा के मौसम में एक कतार से दूसरे कतार की दुरी 40 से 45 से.मी. होनी चाहिये। तथा एक पौधे से दूसरे पौधे की दुरी 30 से 35 से.मी.होनी चाहिए।

6. भिन्डी में लगने वाले किट/रोग और उनसे बचाव-

भिन्डी के पौधों में कई प्रकार के रोग लगते हैं जिनका उपचार सही समय पर नहीं किया गया तो भिन्डी की उत्पादन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। या ये कह सकते हैँ की उत्पादन क्षमता काफी कम हो जाती है जिससे नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसलिए भिन्डी में लगने वाले किट/रोग से बचाव जरुरी है।

1. प्ररोह/फल छेदक-

इस रोग में किटें भिन्डी के तनो में छेद कर देती हैं। जिसके कारण तना सूखने लगता है। इसके साथ ही ये फूलो पर भी आक्रमण करती हैं जिससे की फूल गिर जाते हैं। ये किटें वर्षा के समय ज्यादातर लगती हैं। न कीटों के कारण भिन्डी की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।

इनसे बचाव के लिए सबसे पहले इन कीटों के प्रभाव में आ चुके फूलों और तनों को काटकर फेक देना चाहिए और 1.5 मी.ली. (ML) इंडोसल्फान को 1 लीटर पानी में मिलाकर कम से कम 2 से 3 बार छिड़काव जरूर करना चाहिए।

2. जैसिड किट-

जैसिड किट भिन्डी के फल फूल तना और पत्तियां के रस को चूसते हैं जिसके कारण ये खराब हो जाती हैं।

इसके लिए बाजार से कीटनाशक दवा लाकर इनपर 2 से 3 बार छिड़काव करना चाहिए।

3. पीत/शिरा रोग-

पीत शिरा रोग के कारण भिन्डी की पत्तियां फूल आदि पिली हो जाती हैं। ये रोग अधिकतर वर्षा के मौसम में लगते हैं। सबसे पहले तो इस रोग से प्रभावित पौधों को उखार कर फेक देना चाहिए और 1 मी.ली. (ML) ऑक्सि मिथाइल डेमेटोन को पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव करना चाहिए।

4. चूर्णलित आसिता रोग-

यह रोग भिन्डी के पौधे में बहुत ही तेजी से फैलता है। इस रोग में भिन्डी के पौधे के निचली पत्तियों पर सफ़ेद चूर्ण जैसा पिला दाग पड़ने लगता है।

इस रोग को यदि सीघ्र न रोका गया तो भिन्डी की उत्पादन क्षमता काफी कम हो जायेगी।

इस रोग से बचाव के लिए 2 किग्रा. गंधक (SULPHUR) को 1 लीटर पानी में घोलकर कम से कम 2 से 3 बार भिन्डी के खेत में छिड़काव करना चाहिए और प्रत्येक 2 सप्ताह बाद इसका छिड़काव लगातार करते रहना चाहिए।

7. भिन्डी के फलों की तोड़ाई-

अंत में भिन्डी के पौधे से फलों को तोड़ने का काम किया जाता है। बिज बोने के लगभग 2 महीनो के बाद ये
काम किया जाता है। जब फल तोड़ने योग्य हो जाएँ तो बिना पौधे को हानि पहुचाये फलों को तोड़ लेना चाहिए और फलों की तोड़ने का कार्य 4 से 6 दिन के अंतर पर करना चाहिए।


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